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लेखनी प्रतियोगिता -27-Jun-2022 मुक्तक : परवाह

कितनी परवाह करते हो, बताने की जरूरत नहीं 
तुम्हारी आंखों से ही सब कुछ समझ आ जाता है 
नींद में भी तुम्हारे लबों पर , मेरा ही नाम रहता है 
मेरे जरा से कष्ट में , तुम्हारा कलेजा कांप जाता है 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
27.6.22 


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6 Comments

Swati chourasia

28-Jun-2022 12:35 AM

Nice

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Gunjan Kamal

27-Jun-2022 11:04 AM

बहुत खूब

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Raziya bano

27-Jun-2022 10:37 AM

Nice

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